Manavta Ka Roop Nikhare!
मैंने सोचा कही नाश्ता क्यों न कर लिया जाय | बहुत जोर की भूख लगी थी | मैं होटल की ओर जा रहा था कि रास्ते में मेरी नजर फुटपाथ पे पड़े दो बच्चो पर पड़ी | दोनों लगभग १० से १२ साल के रहे होंगे | दोनों की हालत बहुत ख़राब हो चुकी थी| कमजोरी के कारण अस्थिपंजर साफ़ नजर आ रहे थे | वे भूखे लग रहे थे | छोटा बच्चा बड़े को खाने के बारे में कह रहा था बड़ा उसे चुप कराने की कोशिश कर रहा था|
मैं अचानक रुक गया | दौड़ती-भागती जिंदगी में ये ठहर से गये | जीवन को देख मेरा मन भर आया| सोचा इन्हे कुछ पैसे दे दी जाय | मैं उन्हें १० रूपये देकर आगे बढ़ गया, तुरंत मेरे मन में एक विचार आया कितना कंजूस हूँ मैं | १० रूपये क्या मिलेगी, चाय तक ठंग से न मिलेगी | स्वयं पर शर्म आयी |मै फिर वापिस लौटा-
मैंने बच्चो से कहा :- कुछ खाओगे!
बच्चे थोड़े असमंजस में पड़े
मैंने कहा:- बेटा कुछ खाओगे !
फिर मैंने दुबारा कहा:- बेटा मैं नाश्ता करने जा रहा हूँ, तुम भी कर लो |
वे दोनों भूख के कारण तैयार हो गए | उनके कपडे गंदे होने कारण होटल वाले ने उन्हें डाँट दिया और भगाने लगा |
मैंने कहा:- भाई साहब ! उन्हें जो खाना है - खिला दो| उनके जो भी पैसे होंगे, वो मैं दूंगा | होटल वाले ने आश्चर्य से मेरी ओर देखा; उसकी आँखों में उसके बर्ताव के लिए शर्म साफ़ दिखाई दे रही थी|
बच्चो ने नाश्ता🍱, मिठाई🍫 व लस्सी🍶 मांगी|
सेल्फ सर्विस के कारण मैंने नाश्ता बच्चो को लेकर दिया बच्चे जब खाने लगे- उनके चेहरे की हंसी कुछ नीराली ही थी |
फिर मैंने उन बच्चो को कहा:- बेटा मैंने तुम्हे जो पैसे दिए है,उसमे से एक रूपये का शैम्पू लेकर हैंडपंप (नल) के पास जाकर अच्छी तरीके से नहा लेना | और फिर दोपहर-शाम का खाना पास के मंदिर में चलने वाले लंगर में खा लेना |
और मैं नाश्ते के पैसे देकर फिर अपनी दौड़ती दिनचर्या की ओर बढ़ निकला| वहाँ आस-पास के लोग मुझे बड़े ही सम्मान से देख रहे थे | होटल वाले के शब्द आदर में परिवर्तित हो चुके थे |
मैं स्टेशन की ओर निकला थोड़ा मन भारी लग रहा था; मन थोड़ा उनके बारे में सोचकर दुखी हो रहा था |
रास्ते में मंदिर आया|
मैंने मंदिर की देखा और कहा - हे! ईश्वर | आप कहाँ हो?
इन बच्चों की ये हालत, ये भूख | आप कैसे चुप बैठ सकते हो?
दूसरे ही छड़ मरे मन में विचार आया- पुत्र अभी तक जों उन्हें जो नाश्ता दे रहा था वो कौन था | क्या तुम्हे लगता है वो सब तुमने अपनी सोच से किया | मैं स्तब्ध हो गया मेरे सारे प्रश्न समाप्त हो गए | ऐसा लगा जैसे मैंने ईश्वर से बात की हो | मुझे समझ आ चूका था हम निमित मात्र है उसके कार्य-कलाप के, वो परमात्मा महान है |
ईश्वर हमे किसी की मदद करने तभी भेजता है जब वह हमे उस काम के लायक समझता है |
किसी मदद को मना करना वैसे ही है जैसे ईश्वर के काम को मना करना |
अतः दोस्तों अगर आपको कोई भूखा और लाचार मिले या आपसे कुछ खाने के लिए मांगे तो आप अपने सामर्थ्य अनुसार मदद जरूर करे क्योंकि स्वयं ईश्वर ने आपको इस काम के लिए चुना है |
आज हम -सब मिलकर ये संकल्प करे कि
👉 हम भिक्षावृति को बढ़ावा न दे|
👉 लेकिन अशक्त लाचार और भूखे की मदद ज़रूर करे|
ईश्वर से 🙏 प्रार्थना 🙏 करे कि हमे सद्बुद्धि प्रदान करे और इस लायक बनाये:-
हम बदलेंगे-युग बदलेगा |
हम सुधरेंगे-युग सुधरेगा ||
पहले अपना-आप सुधारे,आयो यारों मिल-जुल कर
Please subscribe and follow my channel.🙏
ReplyDeleteVery nice and heart touching ...I got something new from here...I wil try to help other people.
ReplyDeleteHeart touching
ReplyDeleteThank you so much
DeleteSuperb bro... 👍🏻👍🏻
ReplyDeleteThanksss
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